संकट का सामना – A ‘JanSatta’ Editorial

संकट का सामना

पूर्वी लद्दाख में भारत-चीन सीमा पर पिछले चार महीने से जारी अशांति और तनावपूर्ण हालात पर मंगलवार को पहली बार सरकार ने यह स्वीकार किया कि चीन ने एकतरफा कार्रवाई करते हुए वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर स्थिति को बदलने की कोशिश की है और जिन जगहों को लेकर ताजा विवाद खड़ा हुआ है, वहां स्थिति जस की तस बनी हुई है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने लोकसभा में चीन के मुद्दे पर दिए बयान में माना कि गलवान घाटी में चीनी सैनिकों ने घुसपैठ की और उसी से टकराव के हालात बने।

सदन में चीन के मुद्दे पर अपनी बात रखते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह।

चीन ने एलएसी पर भारी सेना और गोला-बारूद भी जमा कर लिया है। रक्षा मंत्री का यह बयान इसलिए महत्त्वपूर्ण है कि गलवान घाटी की घटना के बाद बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री ने साफ कहा था कि भारत की सीमा में कोई नहीं आया है, न किसी ने हमारी चौकियों पर कब्जा किया है। तब उनके इस बयान पर सवाल उठा था कि अगर चीन हमारे इलाके में नहीं आया तो विवाद क्यों खड़ा हुआ। इसलिए रक्षा मंत्री ने पहली बार चीन से टकराव के मुद्दे पर सदन के समक्ष सही स्थिति रखी और ताजा हालात की जानकारी दी। रक्षा मंत्री का यह स्वीकार करना कि सीमा पर हालात चुनौतीपूर्ण हैं, मुद्दे की गंभीरता को बता रहा है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि पूर्वी लद्दाख में एलएसी पर आज जो हालात हैं, उनसे निपटना बड़ी चुनौती साबित हो रहा है। चीन आए दिन मामले को और संकटपूर्ण बनाता जा रहा है। इसीलिए भारत ने साफ कह दिया है अगर जरूरत पड़ी तो वह चीन को सबक सिखाने के लिए सैन्य विकल्प सहित सभी उपायों का प्रयोग करने में जरा भी नहीं हिचकिचाएगा। यही बात सदन में रक्षा मंत्री ने जोर देकर कही। दरअसल इस तरह के टकरावों के पीछे बड़ा कारण यह है कि सीमाओं को लेकर कोई स्पष्टता नहीं है।

भारत जिसे सीमा मानता रहा है, चीन उसे नहीं मानता। इसी का फायदा उठा कर वह हर बार नए ठिकानों पर कब्जा जमाता है और उस क्षेत्र पर अपना दावा ठोक देता है। भारत और चीन के बीच इस बात को लेकर सहमति पहले से बनी हुई है कि जब तक सीमा विवाद का स्थायी समाधान नहीं निकल जाता, तब तक एलएसी पर कम से कम सेना की तैनाती होगी। इसके अलावा, 1990 से लेकर 2003 तक दोनों देशों ने वास्तविक नियंत्रण को लेकर आपसी समझ बनाने की दिशा में कदम बढ़ाए, लेकिन बाद में चीन इससे पीछे हट गया। जाहिर है, वह चाहता ही नहीं है कि एलएसी को लेकर कोई एकराय बने।

चीन के जारी गतिरोध के बावजूद भारत ने अपनी ओर से शांति और संयम बनाए रखते हुए यह संदेश दिया है कि वह बातचीत के जरिए ही विवाद का समाधान चाहता है। सितंबर के पहले हफ्ते में रक्षा मंत्री ने मास्को में चीन के रक्षा मंत्री के साथ मुलाकात में इसी पर जोर दिया था। इसके बाद भारत और चीन के विदेश मंत्रियों की मास्को में हुई मुलाकात में भी जो पांच सूत्री सहमति बनी, उसमें भी जोर बातचीत के जरिए ही समाधान तक पहुंचने को लेकर रहा। लेकिन चीन एलएसी को लेकर हुए समझौतों की धज्जियां उड़ा रहा है।

जिन जगहों पर उसने कब्जा कर लिया है, वहां से हटने को तैयार नहीं है। एलएसी पर चीन जिस तरह फौज बढ़ा रहा है, उससे तो लगता है कि वह टकराव को कोई नया रूप देने में लगा है। ऐसे में रक्षा मंत्री का सदन और देश को आश्वस्त करना जरूरी हो जाता है।

source: JanSatta

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