मुआवजे का हक
मुंबई, दिल्ली, बंगलुरु आदि महानगरों में भवनों की कीमत करोड़ों में पहुंच चुकी है। भवन निर्माता उनमें तरणताल, व्यायामशाला, क्लब, सुरक्षा चौकसी, गाड़ी खड़ी करने की जगह, बच्चों के खेलने की सुविधाएं आदि के मद में पैसे तय करते हैं, जो कि लाखों में होता है। ऐेसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर इन सुविधाओं में से एक-दो में भी कटौती कर दी जाए, वे ग्राहकों को न दी जाएं, तो उनका कितने का नुकसान होता है।

महानगरों, छोटे शहरों में पिछले कुछ सालों में रिहाइशी मकान बनाने वाले भवन निर्माताओं का कारोबार काफी तेजी से फैला और फल-फूल रहा है। अब तो इस क्षेत्र में कई बड़ी और बहुराष्ट्रीय कंपनियां भी उतर आई हैं। यह सब इसलिए हो रहा है कि शहरों के विकास प्राधिकरण विभिन्न आयवर्ग की जरूरतों के मुताबिक भवन निर्माण का जिम्मा खुद उठाने के बजाय निजी भवन निर्माताओं को इसके लिए प्रोत्साहित करने लगे हैं।
ये भवन निर्माता अपनी योजनाओं के अनुसार जमीन खरीदते और रिहाइशी भवनों के नक्शे पास करा कर ग्राहकों को आकर्षित करने का प्रयास करते हैं। वे नक्शे में तो ग्राहकों को बेहतरीन सुविधाओं का ख्वाब दिखाते हैं, जल्दी से जल्दी उनका कब्जा देने का वादा करते हैं, पर हकीकत में वे अपने वादों को पूरा नहीं कर पाते।
उनकी परियोजनाएं सालों-साल टलती रहती हैं, फिर अंत में जब ग्राहक को उनके मकान का कब्जा मिलता है तो जिन सुविधाओं का वादा किया गया होता है, वे उसमें मिलती ही नहीं हैं। ग्राहक ठगा महसूस करता है। कई बार कुछ भवन निर्माता परियोजनाओं में देरी होने और महंगाई, लागत बढ़ने का तर्क देकर बीच-बीच में तय कीमत से अधिक पैसा भी वसूलने का प्रयास करते हैं।
भवन निर्माताओं की इसी मनमानी पर बंगलुरु के कुछ ग्राहकों ने उनके खिलाफ मुकदमा कर मुआवजे की मांग की थी। पांच रुपए प्रति वर्ग गज प्रति माह की दर से। वह रकम मकान की तय कीमत से अधिक बन रही थी, इसलिए उस पर राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निस्तारण आयोग ने फैसला दिया कि इस तरह मुआवजे का भुगतान नहीं किया जा सकता।
फिर यह मामला उच्चतम न्यायालय में गया, तो उसने फैसला दिया कि ग्राहकों को मुआवजा पाने का हक है, चाहे वह मकान की तय कीमत से अधिक क्यों न हो। अदालत का यह फैसला भवन निर्माताओं के लिए एक बड़ा सबक साबित होगा। पहले भी कुछ मामलों में सर्वोच्च न्यायालय भवन निर्माताओं की मनमानी और ग्राहकों को ठगने को लेकर कड़े फैसले दे चुका है।
अब इस फैसले से शायद भवन निर्माता धोखाधड़ी और मनमानी से बाज आएंगे। जबसे निजी कंपनियां और बड़ी पूंजी वाले भवन निर्माता रिहाइशी भवन निर्माण के क्षेत्र में उतरे हैं, वे ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए खूब आलीशान भवनों और सुविधाओं के नक्शे तैयार कर पेश करते हैं।
जब ग्राहक भवन की बुकिंग कराने जाता है, तो उसे इस तरह समझाया जाता है, मानो उससे बेहतर भवन उसे कहीं और नहीं मिलने वाला। पर तैयार भवन का कब्जा लेने जाता है, तो देख कर हैरान रह जाता है कि जो सुविधाएं देने का उन्हें वादा किया गया था, वे तो उसे मिल ही नहीं रही हैं।
मुंबई, दिल्ली, बंगलुरु आदि महानगरों में भवनों की कीमत करोड़ों में पहुंच चुकी है। भवन निर्माता उनमें तरणताल, व्यायामशाला, क्लब, सुरक्षा चौकसी, गाड़ी खड़ी करने की जगह, बच्चों के खेलने की सुविधाएं आदि के मद में पैसे तय करते हैं, जो कि लाखों में होता है। ऐेसे में अंदाजा लगाया जा सकता है कि अगर इन सुविधाओं में से एक-दो में भी कटौती कर दी जाए, वे ग्राहकों को न दी जाएं, तो उनका कितने का नुकसान होता है।
फिर ग्राहक बैंक से कर्ज लेकर भवन निर्माता को तो रकम चुका देता है, पर घर मिलने में देरी होने के कारण उसे सालों ब्याज और अलग मकान का किराया चुकाते रहना पड़ता है। सर्वोच्च न्यायालय के ताजा फैसले से दूसरे भवन निर्माताओं को भी सबक मिलेगा।
source: jansatta